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Monday 23 October 2017

सिर में गोली लगने की वजह से सब इंस्पेक्टर की हालत नाजुक



महेंद्रगढ़ कोर्ट में 8 सितंबर को कुख्यात बदमाश विक्रम उर्फ ​​पपला को छुड़ाने आए उनके साथियों से लड़ते हुए घायल हुए सब इंस्पेक्टर धर्मबीर सिंह ने 44 दिन बाद आंख खोली। इशारे से पूछा विकास (बेटा) कहां है। पास खड़े रिश्तेदार मनिंदर सिंह ने बताया कि इलाज के लिए रकम का इंतजाम करने गया है। इतना सुनकर उसने आंखें बंद कर लीं। घायल का इलाज कर रहे डॉ। मणि का कहना है कि हालत अभी भी नाजुक हैं। मामूली सा सुधार हुआ है। अभी कुछ कह पाना जल्दबाजी होगी

.बदमाशों ने सिर में मारी थी गोली ...

- पापा धर्मबीर सिंह सब इंस्पेक्टर नारनौल से महेंद्रगढ़ गार्द में तैनात हैं। उनकी ड्यूटी बंदियों को कोर्ट में पेश करना है। 8 सितंबर की बात है। पापा 5 लाख के ईनामी कुख्यात बदमाश विक्रम उर्फ ​​पपला को नारनौल जेल से महेंद्रगढ़ कोर्ट में पेश करने के लिए ला रहे थे। कोर्ट में उतरते ही पहले से घात लगाए बैठे उनके साथियों ने पीछे से आकर हमला कर दिया।

- पापा बदमाश को पकड़े हुए थे। अचानक एक गोली उनके सिर के बाएं हिस्से को चीरती हुई चली गईं। इसके बावजूद बदमाश की गिरफ्त नहीं छोड़ी। बदमाश ने पिस्टल की पिट से पापा के मुंह और आंख पर हमला किया फिर भी पकड़ ढीली नहीं होने दी। इसके बाद बदमाश ने अपनी कमीज फाड़ी और भाग जाने में सफल हो गया।

- पापा को सिविल हॉस्पिटल में भर्ती कराया जहां सीरियस हालत को देखते हुए डॉक्टरों ने रोहतक पीजीआई रेफर के लिए लिख दिया।

- एसपी-डीएसपी ने तत्काल मीटिंग की और तय किया कि घायल को तुरंत इलाज चाहिए इसलिए रेवाड़ी के आदित्य हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया। एसपी की तरफ से एक लाख 30 हजार रुपए इलाज के नाम पर हॉस्पिटल में जमा करा दिए।

- दो दिन तक आईजी सीएस राव समेत अनेक अधिकारी हालचाल जानने के लिए आते रहे, लेकिन उसके बाद कोई नहीं आया। उधर, इलाज का खर्चा बढ़ता जा रहा था।

बेटे ने पूछा क्या बहादुरी से लड़ने का यही ईनाम है ...

- विकास ने सीएम को लेटर लिखकर पूछा है कि मेरे पापा ने किसके लिए गोली खाई और क्या मिला जितना दर्द गोली लगने से नहीं उससे कहीं ज्यादा पीड़ा आपका सिस्टम दे रहा है? क्या बहादुरी से लड़ने का यही ईनाम है? विडंबना देखिए आज तक इन सवालों का उत्तर विकास को नहीं मिला है।

- हमें गर्व है कि मेरे पापा बहादुरी के साथ लड़े, लेकिन अब सवाल पूछता हूं कि किसके लिए लड़े और क्या मिला। जितना दर्द गोली लगने से नहीं हुआ उससे ज्यादा तो इस सिस्टम ने दे दिया। कोई नेता, मंत्री, विधायक- सांसद एक बार भी उनका हाल पूछने नहीं आया।

- महकमे के अधिकारियों के पास भी अब इतना समय नहीं है कि वे आकर पूछ ले कि हम किस हालात से लड़ रहे हैं। क्या इस स्थिति में कोई गोलियां खाने के लिए आगे आएगा। हरगिज नहीं ...

विभाग से लिया 5 लाख का लोन

- हमें बताया गया कि ऐसी स्थिति में पुलिस डिपार्टमेंट तत्काल मदद के तौर पर 5 लाख रुपए का लोन देता है। हमने अप्लाई कर दिया और यह राशि हमें मिल गईं। यह रकम आगे चलकर कर्मचारी के वेतन से कटना शुरू हो जाती है।

- यह भी बताया गया कि इलाज के नाम पर जो खर्च हुआ है वह बाद में पीजीआई रेट के आधार क्लेम करके मिल जाता है। जिस हॉस्पिटल में इलाज चल रहा था उसके खर्चे और पीजीआई क्लेम में दिन रात का अंतर है।

- पापा को भर्ती हुए 44 दिन चुके हैं। 21 अक्टूबर को उन्हें आईसीयू से वार्ड में लाया गया। पहली बार उन्होंने आंखें खोली थी। बोल कुछ नहीं पा रहे हैं। 10 लाख का बिल बन चुका है। घर का पूरा जिम्मा अब मुझ पर है। पांच महीने पहले मेरा एक पैर फेक्चर हो गया था। लोहे की राड डाली  हुई है।

- गांव मकड़ानी जिला दादरी हॉस्पिटल से 70 किमी दूर पड़ता है। रोज आना भी आसान नहीं है। इलाज का बिल भरने के लिए रिश्तेदारी व इधर-उधर जाना पड़ रहा है। इतनी बड़ी रकम ब्याज पर ही मिलेगी।

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